Shodashi for Dummies
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The murti, that is also seen by devotees as ‘Maa Kali’ presides above the temple, and stands in its sanctum sanctorum. Below, she is worshipped in her incarnation as ‘Shoroshi’, a derivation of Shodashi.
The worship of those deities follows a certain sequence often known as Kaadi, Hadi, and Saadi, with Just about every goddess connected with a selected method of devotion and spiritual follow.
॥ इति त्रिपुरसुन्दर्याद्वादशश्लोकीस्तुतिः सम्पूर्णं ॥
Charitable acts such as donating foodstuff and dresses towards the needy are also integral towards the worship of Goddess Lalita, reflecting the compassionate element of the divine.
When Lord Shiva listened to with regard to the demise of his wife, he couldn’t Handle his anger, and he beheaded Sati’s father. Continue to, when his anger was assuaged, he revived Daksha’s everyday living and bestowed him using a goat’s head.
यह उपरोक्त कथा केवल एक कथा ही नहीं है, जीवन का श्रेष्ठतम सत्य है, क्योंकि जिस व्यक्ति पर षोडशी महात्रिपुर सुन्दरी की कृपा हो जाती है, जो व्यक्ति जीवन में पूर्ण सिद्धि प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है, क्योंकि यह शक्ति शिव की शक्ति है, यह शक्ति इच्छा, ज्ञान, क्रिया — तीनों स्वरूपों को पूर्णत: प्रदान करने वाली है।
यह शक्ति वास्तव में त्रिशक्ति स्वरूपा है। षोडशी त्रिपुर सुन्दरी साधना कितनी महान साधना है। इसके बारे में ‘वामकेश्वर तंत्र’ में लिखा है जो व्यक्ति यह साधना जिस मनोभाव से करता है, उसका वह मनोभाव पूर्ण होता है। काम की इच्छा रखने वाला व्यक्ति पूर्ण शक्ति प्राप्त करता है, धन की इच्छा रखने वाला पूर्ण धन प्राप्त करता है, website विद्या की इच्छा रखने वाला विद्या प्राप्त करता है, यश की इच्छा रखने वाला यश प्राप्त करता है, पुत्र की इच्छा रखने वाला पुत्र प्राप्त करता है, कन्या श्रेष्ठ पति को प्राप्त करती है, इसकी साधना से मूर्ख भी ज्ञान प्राप्त करता है, हीन भी गति प्राप्त करता है।
देवीभिर्हृदयादिभिश्च परितो विन्दुं सदाऽऽनन्ददं
Celebrated with fervor through Lalita Jayanti, her devotees look for her blessings for prosperity, wisdom, and liberation, finding solace in her several types and the profound rituals connected with her worship.
॥ अथ श्री त्रिपुरसुन्दरीवेदसारस्तवः ॥
लक्ष्मी-वाग-गजादिभिः कर-लसत्-पाशासि-घण्टादिभिः
Her position transcends the mere granting of worldly pleasures and extends to the purification in the soul, resulting in spiritual enlightenment.
कर्तुं देवि ! जगद्-विलास-विधिना सृष्टेन ते मायया
श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥१०॥